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Pragyan Moon Rover के बारे में पांच बाते
एक ऐतिहासिक उपलब्धि में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने विक्रम लैंडर को चंद्रमा की जमीन पर सफलतापूर्वक उतारा, जिससे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास भारत की उपस्थिति दर्ज हुई। अब पूरी दुनिया का ध्यान Pragyan Moon Rover की ओर है, क्युकी भारत का यह रोवर अब चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव के रहस्यों से परदा हटाएगा। आइए जानते है पांच दिलचस्प पहलू के बारे में जो की Pragyan Moon Rover को इतना ज्यादा खास बनाते है।
1. छोटा कॉम्पैक्ट डिज़ाइन
Pragyan Moon Rover अपने छोटे आकार से सभी को आश्चर्यचकित करता है, इसका वजन सिर्फ 26 किलोग्राम है और लंबाई लगभग 36 इंच है। इसकी इस कॉम्पैक्ट बॉडी में आपको एक छोटी सी बैटरी और एक सोलर ऐरे देखने को मिलता है, जो की इसके शुरवाती डिप्लॉयमेंट में काम आता है। इस रोवर को पावर देने के लिए इसमें 50W के सोलर पैनल भी लगाए गए है। इस रोवर में पावरफुल मोटर भी लगाई गई है जो की ज्यादा से ज्यादा टार्क पैदा कर लूनर एक्सप्लोरेशन को आसान बनती है।
2. धीमी गति
चंद्रमा पर गति सीमा की कमी के बावजूद,Pragyan Moon Rover इत्मीनान से चलता है, प्रति सेकंड यह रोवर केवल एक सेंटीमीटर (लगभग 0.036 किलोमीटर प्रति घंटा) की दूरी तय करता है। Pragyan Rover का मुख्य ऊर्जा का स्रोत क्युकी सौर ऊर्जा है, इसलिए इस रोवर में हमे इतनी कम गति देखने को मिलती है। वही अगर LVM 3 राकेट की बात करी जाये तो उसकी गति इस रोवर से एक दम विपरीत है, LVM 3 राकेट की गति ध्वनि की गति से 30 गुना अधिक थी।
3. असिस्टेड नेविगेशन
Pragyan Moon Rover एडवांस्ड ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम (एडीएएस) जैसे “नेविगेशन” सिस्टम व कैमरों से लैस है। यह रोवर पूरी तरह से ऑटोनोमस नहीं है, इस रोवर को भारत के ISRO मिशन नियंत्रण से कण्ट्रोल कर सकता है। यह रोवर लैंडर से हमेशा हे 500 मीटर से कम की दुरी पे होता है, ऐसा करके यह रोवर हमेशा ही लैंडर से संपर्क बनाये हुए होता है।
4. अनोखा सस्पेंशन सिस्टम
चंद्रमा के ऊबड़-खाबड़ इलाके में नेविगेट करने के लिए नवीनता की आवश्यकता होती है। प्रज्ञान रोवर ‘एल’ आकार के खंडों के साथ एक यूनिक छह-पहिया रॉकर-बोगी सिस्टम का उपयोग करता है। यह सिस्टम इस रोवर के अलग-अलग पहियों को ऊपर या नीचे जाने की अनुमति देता है। यह सिस्टम इस रोवर के अलग-अलग पहियों को ऊपर या नीचे जाने की अनुमति देता है। इसी कारण से हमे इस रोवर के पहियों से 50 mm की फ्लेक्सिबिलिटी भी हासिल होती है।
5. मिशन लिफस्पान
Pragyan Moon Rover का मिशन केवल 14 पृथ्वी दिवस या एक चंद्र दिवस तक चलेगा है। इसके बाद, यह लगातार 24 घंटे की 14 चंद्र रातों को सहन करेगा है, जिसमें बिना किसी शक्ति के -230 डिग्री सेल्सियस तक के ठंडे तापमान का अनुभव करता है। इस रोवर से यह आशा करी जा रही है की सूर्य की वापसी के साथ यह रोवर फिरसे जागेगा और अपनी खोज जारी रखेगा।
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